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Sunday, April 14, 2019

IQ और EQ सफलता की कुंजी


कहिये कैसे हैं आप .

हिंदी नवबर्ष की सुभकामनाएँ. आज मैं एक नये विषय के साथ आप के पास आई हूँ .
एक व्यक्ति के जीवन में सफलता और असफलता में उसके IQ (Intelligence Quotient) और EQ (Emotional Quotient) का बहुत बड़ा योगदान है .चलिये समझते हैं IQ और EQ कैसे एक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है. 

IQ क्या है :- 
बोलचाल की भाषा में अक्सर हम सुनते हैं की व्यक्ति विशेष की IQ अच्छी है. 
अच्छी IQ वाले व्यक्ति कम मेहनत में ज्यादा सफलता हासिल कर लेते हैं. 
या फिर यूँ कहें 
अपनी हर परिष्तिथि को अपनी IQ से समाधान करने में सक्षम होता है .जीवन के शुरुआती पांच वर्ष में IQ का विकास तीव्र गति से होता है. बाद में धीरे या ना के बराबर हो जाता है  

हाल के शोध में यह सिद्ध हो गया है की IQ का विकास किसी भी आयु वर्ग में कर सकते हैं. 
जीवन का हर सफलता व असफलता IQ पर आधारित हो यह जरुरी नही है .IQ का पूरक EQ है जो व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता दिलाता है  जैसे
दो से पांच मांह तक के बच्चों के सामने किसी प्रकार की ध्वनि किसी खिलौनों के माध्यम से उत्पन्न करने से बच्चा अपने अथक प्रयास से उस खिलौने तक पैर या हाथ के सहारे पहुंचने का प्रयास करते हैं .यह क्रिया बच्चों में IQ के स्तर को बढ़ाता है. 
EQ  सामान्य आयु वर्ग के बच्चों को किसी भी असामन्य परिस्तिथि में माँ का स्पर्श सुरक्षित महसूस कराता है. यह स्पर्श EQ को दर्शाता है  

अब जानते हैं IQ को कैसे बढ़ाएं .

1  दैनिक कार्य में बदलाव : रोजमर्रा के कार्यों में बदलाव अपने मष्तिष्क को सुचना देता है. जैसे ब्रश दाएं हाथ के वजाय बाएं से करना .जूते के पहनाव में पैरों का बदलाव करना. 

बहुत सारे कार्यों को हम एक जैसा ही करते रहते हैं  जिससे मस्तिष्क को एक आदत हो जाती है. इस तरह के छोटी छोटी बदलाव कर हम अपने मस्तिष्क को सक्रिय कर सकते हैं .

2  Puzzle सुलझाना :- Puzzle भी अपने IQ को बढ़ाने में मदद करती है. Puzzle सॉल्व करने से मष्तिष्क के न्यूरॉन सामान्य से ज्यादा काम करने लगता है जिससे IQ बढ़ने में मदद मिलती है .

3  शारीरिक व मानसिक व्यायाम :- शारीरिक व्यायाम के साथ मानसिक व्यायाम भी IQ को बढ़ाता है. शारीरिक व्यायाम अपने सुबिधा के अनुरूप कर सकते हैं .मानसिक व्यायाम में सबसे कारगर मैडिटेशन है. स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है. स्वस्थ मस्तिष्क ही IQ बढ़ाने में मदद करती है. 

4  परिस्तिथियों के समक्ष उपस्तिथि :- वीना घबराये जब बार बार परिस्तिथियों का सामना करते हैं तो धीरे धीरे मानसिक क्षमता में उन्नति होती है. जिससे समझ व समाधान में निपुण होने लगते हैं और IQ का स्तर भी बढ़ता है .

धन्यवाद 
अगले ब्लॉग में फिर उपस्तिथ होऊंगी. 

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Saturday, March 23, 2019

ASTHA AUR ANDHAVISHWAS

   

अंधविश्वास संस्कृति व विकास दोनो के लिए घातक है. अंधविश्वास एक दलदल समान है .जिसमे व्यक्ति फसता चला जाता है .

आस्था व अंधविश्वास बहुत ही वारीक रेखा होती है .अंधविश्वास वहीं पनपता है जहाँ आस्था की डोर कमजोर परती है. 

                  अंधविश्वास क्या है 

अपनी कमजोरी को भाग्य का जIमा पहनाने की कोशिश ही अंधविश्वास है. अपनी कमजोरिओं का हल स्वयं ना कर किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा करवाना ही अंधविश्वास का सूचक है .
अन्धविश्वास की जड़ समाज में इतनी मजबूत है की इसका प्रभाव 21वी सदी में भी मिलता है .

हर आयु वर्ग , हर तबका , हर समुदाय कहीं ना कहीं इसे समाज में पनपने की अनुमति दे रहे हैं. 

हमारे बीच बाबाओं के नाम की कमी नही है, जिन्होंने आस्था को अंधविश्वास का स्वरुप दे कैसे हमारी भावना को आघात किये हैं .

वास्तविकता जहाँ दम तोरती है वहीं अन्धविश्वास का वर्चसव हो जाता है. 
यानि 
स्व व अदृश्य शक्तिओं के वीच किसी भी व्यक्ति विशेष का मध्यस्तता ही अंधविश्वास है .

इतिहास में बहुत सारि ऐसी उदाहरण है जो हमें सचेत करता है .

सती प्रथा अंधविश्वास का वृहद स्वरुप था. राजा राम मोहन राय ने इस सामाजिक अंधविश्वास को समाप्त किये. 
आज के दौर में बहुत सारि वृहद व लघु अंधविश्वास परिवार समाज में विद्यमान है जिसे आस्था से जोर रखे हैं .

अंधविश्वास से कैसे बचें. 

1  भय मुक्त सोच :- अंधविश्ववास का जनक ही भय है .भय के कारन व्यक्ति अपनी समस्याओं के समाधान के लिए इधर उधर भटकने लगता है और उपयुक्त परिणाम से वंचित रह जाता है .अतः भयमुक्त सोच स्वयं पर विश्वास से ही अंधविश्वास से बच सकते हैं. 

2  स्वयं को HEEL करें : व्यक्ति स्वयं सक्षम है अपनी आंतरिक व वाह्य समस्या के समाधान करने में  जरुरत है तो अपने आप को समझने की .तर्क वितर्क से आस्था व अंधविश्वास में फर्क करें  

3  भावनात्मक सेहत की मजबूती : भावनात्मक कमजोरी कहीं ना कहीं अंधविश्वास को बढ़ावा देता है .पूर्ण सत्यता के आधार पर आंकलन कर ही किसी प्रथा , किसी जादू टोना को अपनी जीवन का हिस्सा बनाएं. 

4  मान्यताओं को समझें : अक्सर मान्यताओं का विश्लेषण ना कर उसे ढोने के प्रयास में लग जाते हैं .कौन सी मान्यताएं हितकारी है और कौन सी मान्यताएं अहितकारी है  ये समझने की बात है .
बिना इस समझ के अन्धविश्वास से नही बच सकते. 

निश्चितता , विश्वास व लगन से किया गया हर कार्य अपने निश्चित समय पर फलित होता है  किसी भी कार्य को फलित करने के लिए अंधविश्वास का सहारा हमेशा ही घातक होता है. इससे बचें और अपनी विवेक शक्ति से जीवन रुपी यात्रा तय करें .

आपका जीवन सुखमय मंगलमय और तथ्य से पूर्ण हो. 

धन्यवाद 
अगले ब्लॉग में नये विषय के साथ फिर उपस्तिथ होऊंगी .

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jitutasu@gamail.com

Sunday, March 17, 2019

DESTINY


                 

भाग्य को ले बहुत सारि अटकलें चलती रहती है .
मैं क्या करूँ 
मेरा भाग्य ही ऐसा है .
भाग्य और कुछ नही अपने कर्मों का ही प्रतिफल है .

भाग्य से व्यक्ति बड़ा या छोटा बनता है ये बचपन से ही सुनते आये हैं .
अक्सर इस उलझन में फसे रहते हैं .
भाग्य ईश्वर बनाता है .
इसी सोच से हम जीवन रूपी यात्रा तय करते हैं .
हद तो तब होती है जब भाग्य बनाने के लिए खुद के शरण ना जा , किसी फ़क़ीर या बाबा के शरण में जा पहुंचते हैं .
              

भाग्य क्या है 

परिस्तिथियों पर अपना प्रतिक्रिया ही भाग्य है .
भूतकाल अपने वश में  नही होता है चाहे इस जन्म का हो या पिछले जन्म का .
भूतकाल में किया गया कर्म परिस्तिथयों के रूप में आना  ही है .
मगर वर्तमान व भविष्य की रचना स्वयं व्यक्ति ही करता है .

वर्तमान की परिस्तिथियों में क्रिया प्रतिक्रिया , सहजता -असहजता ,प्रेम-द्वेष ही भविष्य बनाता है .
यानि की आपका भाग्य .

भाग्य खुद से ही किया गया कर्मों से ही बनता है .
भाग्य किसी बाहरी शक्ति पर निर्भर नही होती .जीवन में होने वाली घटनाओं को अनुमान की लछमण रेखा से बांध ,कर्म से मुहं मोरना ही भाग्य को स्थिर कर देती है .

कर्म भाग्य परिवर्तन का एक अचूक साधन है .जिसे अपनाकर भाग्य को परिवर्तित कर सकते हैं .

सिद्दत से किया कर्म सदा फलदायी होता है .
राजा हरिश्चंद्र का कर्म सराहनीये है .अपना संपूर्ण राजपाट को छोड़ ,परिवार से विछोह के बाद भी कर्म के डोर को नही छोरे .कर्मों के बल से ही उन्हे अपनी राजपाट व परिवार पुनः प्राप्त हुआ .आज इतिहास उन्हे श्रेष्ठ कर्मों का प्रतिनिधि समझते हैं .

भाग्य को कैसे बदलें :

1  कर्मों की गति : परिस्तिथयों के परिणाम के अवस्था में सहज़ रहना ही कर्मों की गति है 
 जैसे 
किसी को छोटी सी परिस्तिथियाँ विचलित कर जाती है .दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि में सहज़ रह जाता है .
परिस्तिथयों का स्वभाव विचलित करना होता तो इसका प्रभाव दोनो पर समान रूप से होता .परिस्तिथिओं से तालमेल ही भाग्य का दिशा व दसा तय करता है .

2  ऊर्जा का आदान प्रदान : ऊर्जा के आदान प्रदान में कहीं ना कहीं चूक हो जाती है .अक्सर जिस व्यक्ति व परिस्तिथि के साथ हम तालमेल बिठाने में असफल होते हैं वहां ऊर्जा का स्वरुप भी बदल जाता है .एक दूसरे को ताना देना ,निंदा करना और आलोचना करना शुरू कर देते हैं .ये गतिबिधियाँ परिस्तिथियों को उलझा देती है और कहीं ना कहीं भाग्य को रोक देती है  

3  सकारात्मक परिणाम : व्यक्ति परिस्तिथियों को ना अपना पाता है ना उससे निकल पाता है .परिस्तिथयों का गुना भाग में लग जाता है .
परिस्तिथि का स्वरुप जैसा भी हो उसे अपनाने का प्रयास करें .परिस्तिथि को अपनाए बिना सकारात्मक प्रयास संभव नही है .बिना सकारत्मक प्रयास के भाग्य परिवर्तन असंभव है .

4  अंतःयात्रा : भाग्य बदलने में सबसे महत्वपूर्ण विधि अंतःयात्रा ही है .व्यक्ति हमेशा कब ,क्यों ,कैसे के आंकलन में इतना खो जाता है की फुर्सत ही नही मिलती अंतःयात्रा का .
फुर्सत के समय में अंतःयात्रा का जरूर प्रयास करें .अपने आप की समझ से स्वतः भाग्य परिवर्तन होता है .

निश्चित रूप से भाग्य को कर्म से बनाया जा सकता है .अतः कर्म पूरी दृढ़ता और लगन से करते हुये हम एक अच्छे भाग्य का निर्माण कर सकते हैं .हमारा कर्म हमारा भाग्य ही नही अपितु हमारे राष्ट्र का भी भाग्य निर्माण करता है .

DEEDS TRUMPH DESTINY

धन्यवाद 
अगले ब्लॉग में नये विषय के साथ फिर उपस्तिथ होऊंगी 

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Saturday, March 9, 2019

HABITS KEY TO SUCCESS


 आदत तीन अक्षरों का शब्द अपने अंदर सफलता व असफलता का आधारशिला है  

जीवन में प्रसन्ता, कुशलता तथा उन्नति अच्छी आदतों पर ही निर्भर है. अच्छी आदत मनुष्य के जीवन की पूंजी है .

आम तौर पर अपने COMFORT के अनुसार व्यक्ति आदत को त्यागता या ग्रहण करता है. कुछ आदतें हमें परिवार से मिलती है तो कुछ आदतों को हम आस पास के माहौल से सीखते हैं .

                                आदत क्या है 

                 

जीवन सामाजिक क्रियात्मक संवेगात्मक तथा बौद्धिक आदतों का एक पुंज है. आदतें व्यवहार को उभारती है. 

आदत अर्जित,स्वचालित तथा क्रियात्मक व्यवहार  है जिसे हम सब अभ्यास विधि से सीखते हैं .आदतें सामाजिक सूझ तथा नैतिक अनुशासन का आधार है .ये समाज का गतिमान पहिया है .

इसीलिए हमेशा अच्छी आदतों का परिधान पहनकर परिवार ,समाज व देश के विकास में अपना योगदान देने का प्रयास करना चाहिए .

आदतों को दो श्रेणी में रखा गया है. 

अच्छी आदतें 

बुरी आदतें 

अच्छी आदत : अच्छी आदत धारण करने से व्यक्ति अपने आप में खास हो जाता है. संसार के सभी सुखों का मालिक बन बैठता है .

बुरी आदत : बुरी आदत धारण करने वाला व्यक्ति समाज परिवार से परिष्कृत हो जाता है .

अपने महाकाव्यों को देखें तो 

अच्छी और बुरी आदतों का अनेकों उदाहरण देखने को मिलता  हैं. 

रामायण के सन्दर्भ में 

 कैकई अपनी एक स्वार्थी आदत की वजह से प्रेम व सम्मान से वंचित हो गई. 

वहीँ कौशिल्या अपनी अच्छी आदतों की वजह से प्रेम व सम्मान से अलंकृत हुई .

किसी भी आदत को आत्मसात करने से पहले लाभ हानि के पहलुओं को जरूर समझ लें. 

अच्छी आदतों को कैसे विकसित करें. 

1  संकल्प की दृढ़ता का नियम : किसी भी आदत को छोड़ना या ग्रहण करना व्यक्ति के दृढ संकल्प पर ही आधारित होता  है .
इरादे की दृढ़ता जितनी दृढ होगी सफलता उतनी जल्दी मिलेगी. 

2  आग्रह का नियम : आदतों के विकास में आग्रह की मुख्य भूमिका होती है .नयी आदत जबतक जीवन में स्थापित ना कर लें तब तक किसी अपवाद को सामने ना रखें. अपनी आदतों को उतनी देर तक निरंतरता बनाएं रखें जब तक आदत दृढ नही हो जाती .

3  सक्रियता का नियम : किसी भी पुरानी आदतों को नयी आदतों को ग्रहण करने के लिए हमेशा सक्रिय रहें. अपने संकल्प को कर्म का रूप देना ही अच्छी आदतों को मजबूती प्रदान करती  है .

4  अभ्यास का नियम : एक अच्छी आदत बनने के बाद उसे यथावत बनाए रखने के लिए अभ्यास बहुत जरुरी है .अभ्यास के अभाव में आदतें लुप्त हो जाती है  

बुरी आदतों से कैसे बचें 
                          

1  कारण मालूम होना : आदत के कारणों  को जाने बिना  नियंत्रण करना मुश्किल है.इसीलिए हमेशा आदतों को अपनाने से पहले उसके विषय वस्तु से अवगत हो लें .

2  भावना अथवा संवेदनात्मक विचारों से बचना : कभी कभी व्यक्ति किसी कारणवश हीन भावना से ग्रस्त हो बुरी आदतों को अपना लेता है  इसलिये हमेशा आत्मविश्वास को बनाये रखें. आत्मविश्वास बुरी आदतों से वचाव करती है. 
& आत्मविश्वास पर हमारा पिछला ब्लॉग अवस्य पढ़ें. 

3  अच्छी संगती का चयन : संगती हमारे जीवन में बहुत सारे आदतों को समा देती है .हमेशा अच्छी संगत का चयन करें. 

4  अच्छा वातावरण : अच्छा वातावरण अच्छी आदतों को जन्म देती है  अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाये रखें अच्छी आदतों वाले व्यक्ति को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं. 

आदत मनुष्य के विकास का सीढ़ी है .जीवन की यात्रा अच्छी आदतों के साथ ही करनी चाहिये .
अच्छी आदत एक भली भांति सीखा हुआ कार्य है जिसे अपने दैनिक जीवन में जरूर अपनाएं .
अच्छी आदत सभी सफलता की कुंजी है .

धन्यवाद 
अगले ब्लॉग में नये विषय के साथ फिर उपस्तिथ होऊंगी. 

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Sunday, February 24, 2019

SOUL POWER


आंतरिक ऊर्जा व्यक्ति के व्यक्तितव का वो हिस्सा है जो सर्वांगिणी विकास में योगदान देता है. आंतरिक ऊर्जा मानव को मानवता से जोड़े रखता है .

कहिये कैसे हैं आप सब .
जन्म के साथ यदि कुछ साथ आता है वह है आंतरिक ऊर्जा .जब व्यक्ति सृष्टि के संपर्क में आता है आंतरिक ऊर्जा से पूर्ण होता है .

उम्र क्रम के पड़ाव से गुजरते हुये आंतरिक ऊर्जा कहीं ना कहीं घटने लगती है .

आंतरिक ऊर्जा एक ऐसी अपार ऊर्जा है जो व्यक्ति के संपूर्ण विकास का सहभागी बनता है. 

बिना आंतरिक ऊर्जा के कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तितव को निखार नहीं सकता .

जरुरत है उन ऊर्जाओं को पहचानने की :- 

चारो तरफ ही नकारात्मक बाताबरण नकारात्मक सोच आंतरिक ऊर्जा को दबा देता है . जैसे सफ़ेद चादर को मैल ढक देता है. उसी तरह आंतरिक ऊर्जा भी नकारात्मक चादर से ढक जाता है. 

आंतरिक ऊर्जा को कैसे बचाएँ :-

उम्र के पड़ाव में व्यक्ति जानकर या अंजाने में बहुत सारि ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बन जाता है जिससे आंतरिक ऊर्जा छीन हो जाती है. 

अपने सही सोच सत्कर्म भावनाओं की गति में ना बहकर इस ऊर्जा को बचा सकते हैं. अध्यात्म से जुरकर भी ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है. जीवन में कर्म की प्रधानता भी आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती है. 

तात्पर्य यह है अपनी मन कर्म वचन को आधार बनाते हुये चिंता रहित कर्म की ओर बढ़ना  

आंतरिक ऊर्जा से लाभ :-

1  व्यक्तितव में निखार :- आंतरिक ऊर्जा  व्यक्तितव के निखार का रामबाण इलाज है  कोई भी व्यक्ति कितना भी PERSONALITY DEVELOPMENT के नियम सिख ले   आंतरिक ऊर्जा के बिना सफल नहीं हो सकता है  

2  लक्ष्य की ओर बढ़ना :- हर व्यक्ति का जीवन किसी ना किसी लक्ष्य से ज़ुरा होता है. किसी को आसानी से लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो किसी को लक्ष्य की प्राप्ति में बाधाओं का सामना करना परता है. उस परिस्तिथि में आंतरिक ऊर्जा आपके आत्मबल को स्थिर रखने में सहायक सिद्ध होगा .

3  मूल्यों को समझना :- आंतरिक ऊर्जा अपने सोचने समझने निर्णय लेने की क्षमता को प्रगाढ़ करता है .आपके अंदर ठहराव लाता है. आशावादी नज़रिया देता है .अपने मूल्यों को समझने और उसे अपने जीवन में अमल करने की शक्ति देता है. 

4  सकारात्मक सोच :- आंतरिक ऊर्जा हर परिस्तिथियों में सकारात्मक सोच को जन्म देता है जिससे हर परिस्तिथि को आसानी से समझ सकते हैं. सही व गलत की आ जाती है .

आंतरिक ऊर्जा से सफलता आपके संमीप आती है .अपना व्यक्तितव दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हो जाता है .परिवार समाज व देश के विकास में सराहनीय भूमिका का सहभागी बनाता है. आंतरिक ऊर्जा जीवन को संयमित और नियमित करता है जो सफलता पाने का मूल सूत्र है. आंतरिक ऊर्जा को अपने जीवन का हिस्सा जरूर बनाएं. 

धन्यवाद 
अगले ब्लॉग में नये विषय के साथ फिर उपस्थित होऊंगी .

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आपकी ज्योति 

jitutasu@gmail.com

Sunday, February 17, 2019

HOUSEWIFE PERSONALITY IMPROVEMENT



घरेलु महिलाओं का संपूर्ण जीवन त्याग बलिदान समर्पण का ही समिश्रण है. घरेलु महिलाएं हर रिश्तों, हर परिस्तिथियों को संभालते संभालते कहीं खो सी जाती है .

कहिये कैसे हैं आप .

HOUSEWIFE APNI PERSONALITY KO KAISEY IMPROVE करें यह आज का विषय है .

        HOUSEWIFE HOW TO IMPROVE PERSONALITY 


समय का बदलाव भी कुछ ज्यादा प्रभाव दिखा नहीं पाती है .रिश्तों को संजोने की कला में माहिर अपने व्यक्तित्व को संजोने की होर में पीछे रह जाती है .

समाज का बहुत बड़ा तबका घरेलु महिलाओं का है जिन्हे खुद के लिए समय नहीं होता है. परिस्तिथियों से समझौता ही उनका पहचान बन जाता है .
आज जानने की कोशिश करते हैं की घर की जिम्मेदारिओं के साथ खुद को कैसे निखारें. 
यानि घरेलु महिला से कुशल महिला कैसे बनें. 

महिलाओं के उत्थान के लिये सरकार के तरफ से भी बहुत सारि योजनाओं को लागु किया गया है .जिसका लाभ उठाकर महिलाएं अपने व्यक्तित्व को निखार सकती है. 
जैसे की ग्रामीण महिला छोटे छोटे रोज़गार स्वयं स्थापित कर सकती है .
शहरी घरेलु महिलाएं भी अपनी क्षमता के अनुसार नये तकनिकी का ज्ञान प्राप्त कर अपनी योजनाओं को नया रूप दे सकती है  

इन सुझावों को अपना कर भी घरेलु महिलाएं अपना विकास कर सकती हैं .

योजनाबद्ध करें : योजनाबद्ध होकर काम करें  अपने हर छोटे बरे कामों को सुनियोजित करें .चाहे घर की सफाई हो , बच्चों को विद्यालय छोड़ना हो या फिर कोई अन्य काम .
अक्सर महिलाएं सोचती हैं की हमें सुनियोजित होने की क्या अवयशकता है जब सही लगेगा कर लुंगी. 
ऐसा दृष्टिकोण अपना समय बर्बाद कर देता है .

खुशी का बहाना ढूंढें : जरुरी नहीं है की घर का कोई सदस्य उपलब्धि हासिल करेंगे तभी आप खुशी की अनुभूति करें .
खुद कुछ ऐसा करने की कोशिश करें जो आपको खुशी दे .जिसे करने में आपकी रूचि हो  

पोशाक का चयन :अक्सर महिलाएं पोशाक के चयन में गलतियां कर जाती है .दूसरों के कहने , दूसरों को देखकर पोशाक का चयन ना करें  जो आपके लिए आरामदायक हो जिसे पहनकर आपका आत्मविश्वास बढ़े उसी पोशाक को अपने पहनावे का हिस्सा बनावें .

व्यायाम : अपने दिनचर्या में व्यायाम को जरूर शामिल करें .जब शारीरिक रूप से आप तंदुरुस्त होते हैं तो आत्मविश्वास भी बढ़ता है और बीमार होने की संभावना भी काम होती है  

आर्थिक मजबूती : महिलाएं चाह कर भी अपने सपनो को फलीभूत नहीं कर पाती .इसके लिये खाली समय में अपनी योग्यता के अनुसार कुछ ना कुछ काम करें जो आर्थिक मजबूती को बढ़ाये .

बदलाव की तैयारी : बदलते दौर के साथ बदलाव को अपनाये .समय की मांग है नयी तकनीक से अवगत होना .जब आप कुछ नया सीखने को तैयार होंगे तभी कुछ नया कर पाएंगे  

भुलैया को माफ़ करें : जीवन गलतियों, बिफलताओं, उतार चढाव का गुना भाग है. गलतिओं से सीखना, माफ़ कर नयी शुरुआत करना बहुत जरुरी है  अक्सर महिलाएं इन्ही भूल भुलैया में उलझ कर रह जाती है. 

देश विकास के चरम सीमा पर है समय के साथ बदलाव भी आवश्यक है  अपने अस्तित्व को पहचाने  और अपने लिए कुछ करने का प्रयास करें. ऐसा करने से आपका परिवार भी गौरवान्वित महसूस करेगा. 
वैसे भी हर Soul अपना अपना सफर तय करता है .

धन्यवाद 

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जय हिन्द 
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Saturday, February 9, 2019

HEALTH CARE

सेहत एक अमूल्य सम्पदा है  सेहत के बिना सब सुख समृद्धि नीरस सी लगती है.

           

               

कहिये कैसे हैं आप. 

हर समय हम सब सोचते हैं कहीं स्वास्थ्य बिगड़ ना जाये. हर वक़्त इसी कश्मकश में रहते हुये भी हम सब सेहत का ध्यान नहीं रख पाते हैं. 

आज मैं इसी विषय को चर्चास्वारूप प्रस्तुत कर रही हूँ .

सेहत का बिगड़ना एक दिन के प्रतिक्रिया के फलस्वरूप नहीं होती है .काफी समय पहले से शरीर के अंदर प्रतिक्रिया होती रहती है .जागरूकता के अभाव में यह समझ के परे हो जाते हैं. 

                              
हम सभी इस बात से अवगत हैं की हमारा शरीर पंचतत्व और सात चक्रों से बना एक संरचना है जिसमे जल तत्त्व वायु तत्त्व अग्नि तत्त्व पृथ्वी तत्त्व और आकाश तत्त्व का समिश्रण है 

जब इन तत्वों के साथ अपने सहूलियत के अनुसार तत्वों के वास्तविकता से अलग वर्ताव करते हैं तो आंतरिक रूप से हम बीमार होना शुरू हो जाते हैं .

हमारे चक्रों के साथ भी ऐसा ही कुछ होता है.

आयुर्वेद के तरफ देखे तो हमारा शरीर वात पित्त कफ का समायोजन में फेर बदल से हम बीमार होते हैं. मेडिकल जगत अपनी वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार सेहत का आंकलन करता है .

सेहत का विस्तृत ज्ञान इन्ही सब सूत्रों के अधीन आता है.

कुछ सरल शब्दों में जानने का प्रयास करते हैं. सेहत का ध्यान कैसे रखें 
सरल शब्दों में सेहत का मापदंड दो अस्तरों पर कर सकते हैं .

1  मानसिक सेहत

2  शाररिक सेहत

मानसिक सेहत :-

बाहरी सेहत अच्छा हो या बुरा सबको दीखता है लेकिन मानसिक सेहत का अनुमान लगाने के लिए थोड़ा प्रयासों की जरुरत होती है  

आम तौर पर मानसिक सेहत का जुड़ाव पागलपन से करते हैं  

मगर यह यथार्थ नहीं है .

मानसिक रूप से हम सभी किसी ना किसी रूप से बीमार हैं .

जैसे की कोई भावनात्मक रूप से बीमार है .कोई अपने अहंकारों के वशीभूत है  

कुछ प्रयासों से हम मानसिक सेहत को सुदृढ़ कर सकते हैं. 

1  तनाव रहित जीवन जीने की कोशिश करें .तनाव मानसिक पटल पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. 
अपनी हर परिस्तिथि को संभालने का प्रयत्न करें .तनाव जीवन का हिस्सा तब बनता है जब हम अपनी परिस्थितिओं को संभालने में असफल हो जाते हैं. 

2  भावनात्मक रूप से मजबूत बनने का प्रयास करें .किसी भी सुखद या फिर दुखद परिस्तिथियाँ विचारों में उथल पुथल सुख दुःख की अनुभूति ही भावनात्मक परिष्तिथियों को जन्म देती है जो आपके मानसिक सेहत को समय समय पर प्रभावित करता है. 

3  अपने को अध्यात्म से जोड़ें .अध्यात्म को अपने जीवन का एहम हिस्सा समझें .जब किसी कार्य को केवल कर्म तक सिमित रखते हुए सम्पन्न करते हैं तो बहुत सारे नकारत्मक विचारो से परे हो जाते हैं और खुद को हल्का महसूस करते हैं .

4  हमेशा सकारात्मक सोचें .सकारात्मक सोच मानसिक सेहत के लिये औषधी स्वरुप है. जिसे अपने जीवन में अपनाके अनेक प्रकार की मानसिक समस्याओं से निजात पा सकते हैं. 

शाररिक सेहत 

भाग दौर के माहौल में हम सभी लक्ष्य की ओर ही देखते हैं और उसे पाने की होर में शारारिक सेहत पीछे छूट जाती है .

आज के भारत का आंकड़ा देखा जाये तो प्रत्येक आयु वर्ग के व्यक्ति किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है .

यदि कुछ निर्देशों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें तो अपने लक्ष्यों के साथ सेहत को भी संभाल लेंगे. 

1  सूर्योदय के पूर्व जागने का प्रयास करें .यह बहुत छोटा और सरल उपाय है सेहत को सुधारने के लिए. साश्त्रों में वर्णित है सूर्य की पहली किरण में बहुत सारि शक्तियां होती है जो हमें बिमारिओं से लड़ने में सक्षम बनाती है. 

2  तीस मिनट का व्यायाम प्रतिदिन करें. व्यायाम करने से शरीर के कोशिका रक्तधमनिआ मांसपेशी सुचारु रूप से काम करने में सक्षम होती है .शरीर का रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है. 

3  अपनी खान पान को संयमित करें .अक्सर खाना तो खा लेते हैं लेकिन खाने का पोषक तत्त्व नहीं मील पाता है .जिसका कारन है की खाने को अच्छी तरह से चबाते नहीं हैं .खाना हमेशा ताजा खाएं .खाना खाने के एक घंटा बाद पानी पियें जिससे खाना पचने में आसानी हो  

4  खाना को अध्यात्म से जोड़ें. यानि खाना लेने से पहले एक मिनट रुक के अपनी सकारात्मक सोच से देखे  जैसे की इस भोजन को करने से मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ होऊंगा. तत्पश्चात भोजन ग्रहण करें  सप्ताह के अंदर खुद फर्क महसूस होगा .


मानसिक सेहत और शारारिक सेहत आपस में एक दूसरे का पूरक है .जब हम दोनों को साथ ले चलते हैं तभी सही मायने में हम स्वस्थ हैं. 

अपनी सेहत के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करें. 

धन्यवाद

अगले ब्लॉग में फिर एक नये विषय के साथ आउंगी .

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