भाग्य को ले बहुत सारि अटकलें चलती रहती है .
मैं क्या करूँ
मेरा भाग्य ही ऐसा है .
भाग्य और कुछ नही अपने कर्मों का ही प्रतिफल है .
भाग्य से व्यक्ति बड़ा या छोटा बनता है ये बचपन से ही सुनते आये हैं .
अक्सर इस उलझन में फसे रहते हैं .
भाग्य ईश्वर बनाता है .
इसी सोच से हम जीवन रूपी यात्रा तय करते हैं .
हद तो तब होती है जब भाग्य बनाने के लिए खुद के शरण ना जा , किसी फ़क़ीर या बाबा के शरण में जा पहुंचते हैं .
भाग्य क्या है
परिस्तिथियों पर अपना प्रतिक्रिया ही भाग्य है .
भूतकाल अपने वश में नही होता है चाहे इस जन्म का हो या पिछले जन्म का .
भूतकाल में किया गया कर्म परिस्तिथयों के रूप में आना ही है .
मगर वर्तमान व भविष्य की रचना स्वयं व्यक्ति ही करता है .
वर्तमान की परिस्तिथियों में क्रिया प्रतिक्रिया , सहजता -असहजता ,प्रेम-द्वेष ही भविष्य बनाता है .
यानि की आपका भाग्य .
भाग्य खुद से ही किया गया कर्मों से ही बनता है .
भाग्य किसी बाहरी शक्ति पर निर्भर नही होती .जीवन में होने वाली घटनाओं को अनुमान की लछमण रेखा से बांध ,कर्म से मुहं मोरना ही भाग्य को स्थिर कर देती है .
कर्म भाग्य परिवर्तन का एक अचूक साधन है .जिसे अपनाकर भाग्य को परिवर्तित कर सकते हैं .
सिद्दत से किया कर्म सदा फलदायी होता है .
राजा हरिश्चंद्र का कर्म सराहनीये है .अपना संपूर्ण राजपाट को छोड़ ,परिवार से विछोह के बाद भी कर्म के डोर को नही छोरे .कर्मों के बल से ही उन्हे अपनी राजपाट व परिवार पुनः प्राप्त हुआ .आज इतिहास उन्हे श्रेष्ठ कर्मों का प्रतिनिधि समझते हैं .
भाग्य को कैसे बदलें :
1 कर्मों की गति : परिस्तिथयों के परिणाम के अवस्था में सहज़ रहना ही कर्मों की गति है
जैसे
किसी को छोटी सी परिस्तिथियाँ विचलित कर जाती है .दूसरा व्यक्ति उसी परिस्तिथि में सहज़ रह जाता है .
परिस्तिथयों का स्वभाव विचलित करना होता तो इसका प्रभाव दोनो पर समान रूप से होता .परिस्तिथिओं से तालमेल ही भाग्य का दिशा व दसा तय करता है .
2 ऊर्जा का आदान प्रदान : ऊर्जा के आदान प्रदान में कहीं ना कहीं चूक हो जाती है .अक्सर जिस व्यक्ति व परिस्तिथि के साथ हम तालमेल बिठाने में असफल होते हैं वहां ऊर्जा का स्वरुप भी बदल जाता है .एक दूसरे को ताना देना ,निंदा करना और आलोचना करना शुरू कर देते हैं .ये गतिबिधियाँ परिस्तिथियों को उलझा देती है और कहीं ना कहीं भाग्य को रोक देती है
3 सकारात्मक परिणाम : व्यक्ति परिस्तिथियों को ना अपना पाता है ना उससे निकल पाता है .परिस्तिथयों का गुना भाग में लग जाता है .
परिस्तिथि का स्वरुप जैसा भी हो उसे अपनाने का प्रयास करें .परिस्तिथि को अपनाए बिना सकारात्मक प्रयास संभव नही है .बिना सकारत्मक प्रयास के भाग्य परिवर्तन असंभव है .
4 अंतःयात्रा : भाग्य बदलने में सबसे महत्वपूर्ण विधि अंतःयात्रा ही है .व्यक्ति हमेशा कब ,क्यों ,कैसे के आंकलन में इतना खो जाता है की फुर्सत ही नही मिलती अंतःयात्रा का .
फुर्सत के समय में अंतःयात्रा का जरूर प्रयास करें .अपने आप की समझ से स्वतः भाग्य परिवर्तन होता है .
निश्चित रूप से भाग्य को कर्म से बनाया जा सकता है .अतः कर्म पूरी दृढ़ता और लगन से करते हुये हम एक अच्छे भाग्य का निर्माण कर सकते हैं .हमारा कर्म हमारा भाग्य ही नही अपितु हमारे राष्ट्र का भी भाग्य निर्माण करता है .
DEEDS TRUMPH DESTINY
धन्यवाद
अगले ब्लॉग में नये विषय के साथ फिर उपस्तिथ होऊंगी
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