कहिये कैसे हैं आप .आज मैं महिलाओं के विकास में महत्वपूर्ण बिषयों के योगदान के वारे में लिखूंगी .
मैं ज्योति आपको इस ब्लॉग में स्वागत करती हूँ
महिलाओं का अधिकार और विकास
सृष्टि के निर्माण से ही महिलाएं अपनी अस्तित्व के बचाव के लिए संघर्ष करती आ रही है. कभी वो संघर्ष सतीप्रथा के रूप में सामने आया तो कभी दहेज़ प्रथा के रूप में महिला के मानसिक पटल पर अमिट छाप छोड़ रही है. जिससे बाहर निकलना सरल तो नहीं है.
ठहरकर सोचते हैं क्या भविष्य है समाज में महिला का
माँ दुर्गा माँ सीता का स्वरुप जिन महिलाओं को हम मानते हैं उन्हे कभी गर्भ में वजूद मिटाने का प्रयास करते हैं तो कभी दहेज़ के लिए
अंकुरण से लेकर वृच्छ बनने की प्रक्रिया महिलाओं के लिए संघर्षों से भरा हुआ होता है.
ऐसी स्तिथि में महिलाएं यदि अपने अधिकारों को समझ ले तो काफी हद तक अपनी अस्तित्व को बचा सकती है .
महिला के अधिकारों को यदि दो दायरों में बाँट कर देखे तो समझना सरल हो जायेगा.
सामाजिक दायरा जिसका उल्लेख किसी नियम सिमा के अंतर्गत नहीं है. महिलाएं अपनी विवेक शक्ति से निर्णय ले सकती है क्या सहना है किस पर आवाज बुलंद करना है . बचपन में कुछ ऐसी प्रतिक्रिया देखने को मिलती है जो बच्चियों को कुंठाग्रस्त करती है. जिस कारण अपनी भावनाओं हुनर को व्यक्त करने से झिझकती है .धीरे धीरे यही कुंठाग्रस्त करने वाली परवरिश उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है .सहन करना किसी समस्या का समाधान नहीं होता है बल्कि सही व गलत की पहचान महिलाओं को अपने अस्तित्व से जोरती है .
जब महिलाएं अपनी आत्मा शक्ति से सामाजिक रूप से मिले अपनी अधिकारों को समझने लगेगी. तभी महिलाएं क़ानूनी अधिकारों का सही उपयोग कर पायेगी.
अब जानते हैं की संबैधानिक अधिकार क्या क्या है.
भारतीय संबिधान में महिलाओं के लिए बहुत सारे कानूनों का प्रावधान किया गया है. जिनमें से कुछ क़ानूनों की जरुरत दीन प्रतिदिन है.
1 समानता का अधिकार :- महिला व पुरुष सामाजिक हर अधिकारों के लिए समान दायरों में आते हैं. महिलाओं को खुद समझना होगा अपने समानता के अधिकारों को सहजता से उपयोग करें इसकी शुरुआत पहले घर से ही करनी होगी. अपनी बच्चियों को बिना किसी भेद भाव के समानता के तराजू में तौलें
2 स्वतंत्रता का अधिकार :- ये अधिकार भी महिलाओं से जैसे कोशों दूर है कानून तो बना सरकार का भी यही मानना है की स्वतंत्रता का अधिकार मिले
क्या यह सही मायने में सार्थक है. नहीं !
अपने अधिकारों को सुचारु रूप से अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने के लिए महिलाओं को जागरूक होना होगा
3 शोषण के बिरुद्ध अधिकार :- संविधान ने महिलाओं को यह अधिकार दिया है अपने प्रति हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज उठाये .दुर्भाग्य वश ज्यादातर महिलाएं इस अधिकार से भी वंचित रह जाती है जागरूकता के अभाव में वह समझ नहीं पाती है की इस परिस्तिथि में क्या करें क्या नही करें.
4 अभिव्यक्ति का अधिकार :- यह अधिकार तो बचपन से ही छूट जाती है परिवार का सोच इस तरह हावी हो जाता है की महिलाएं अपनी सोचने समझने की क्षमता को भी नकार देती है .
कोई भी अधिकार तभी महिलाओं के लिए कारगर हो सकती है जब महिला खुद अपने आप को सक्षम करे और अपनी आत्म विश्वास को बढ़ाये .
ईश्वर भी उसी का मदद करता है जो खुद का मदद करता है
जीवन के किसी भी पड़ाव में यदि लगे की मैं अपना अस्तित्व खो रही हूँ तो क़ानूनी मदद जरूर लेनी चाहिए . संविधान में और बहुत सारे अधिकारों का प्रावधान है जिसका सहारा प्रतिकूल परस्तिथि में लेकर अनुकूल परिस्तिथि की ओर बढ़ा जा सकता है.
अपना मनोबल ऊँचा रखे और आत्म विश्वाश बनाये रखे
धन्यवाद
अगले ब्लॉग में एक नये विषय के साथ फिर उपस्तिथ होउंगी .
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